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(Hindi)श्री कृष्ण प्रेम का जन्म इंग्लैंड में रॉनल्ड हेनरी निक्सन के नाम से हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान उन्होंने रॉयल फ़्लाइंग कोर (जो आगे चलकर रॉयल एयर फ़ोर्स बनी) में फ़ाइटर पायलट के रूप में सेवा दी। युद्ध के पश्चात उन्होंने केम्ब्रिज विश्वविद्यालय के किंग्स कॉलेज से अंग्रेज़ी साहित्य और नैतिक दर्शन (मॉरल साइंसेज़) में डिग्री प्राप्त की। 1920 में वे भारत आए और लखनऊ विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य आरंभ किया।
लखनऊ में उनकी भेंट विश्वविद्यालय के उपकुलपति की पत्नी श्रीमती मोनिका देवी से हुई, जिन्हें वे अपनी गुरु मानने लगे। जब वे बनारस चली गईं तो श्री कृष्ण प्रेम भी काशी हिन्दू विश्वविद्यालय चले गए। 1928 में जब उनकी गुरु ने वैराग्य धारण कर वैष्णव संन्यास लिया, तो रॉनल्ड निक्सन भी सन्यासी बनकर श्री कृष्ण प्रेम कहलाए।
उन्होंने दो वर्षों तक अल्मोड़ा में भिक्षावृत्ति से जीवनयापन करते हुए अपनी गुरु श्री यशोदा माई के साथ 30 किमी दूर मिर्टोला में एक राधा-कृष्ण मंदिर का निर्माण कराया। 1932 से वे वहीं रहने लगे। 1944 में यशोदा माई के निधन के बाद वे आश्रम के प्रधान सेवक बने।
1948 में उन्होंने भगवान रमण महर्षि के दर्शन किए, जिन्होंने उन्हें ज्ञान और भक्ति का अद्भुत संयोग कहा। वे अपने भारतीय और विदेशी शिष्यों के प्रिय "गोपाल-दा" कहलाते थे। 1965 में वे ब्रह्मलीन हो गए।
(English)Shri Krishna Prem, born as Ronald Henry Nixon in England, served as a fighter pilot in World War I before earning a degree from Cambridge. In 1920, he moved to India to teach at the University of Lucknow, where he met his guru, Monica Devi. Following her to Banaras, he embraced Vaishnava renunciation in 1928 and became Shri Krishna Prem. With his guru Yashoda Mai, he built a Radha-Krishna temple in Mirtola. After her passing, he led the ashram. Revered as "Gopal-da," he was praised by Ramana Maharshi for uniting knowledge and devotion. He passed away in 1965.